Ghulam Ali: Ab aur kya kisi se marasim badhayen ham



अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम;

Ab aur kya kisi se maraasim badhaayen ham;
Ye bhi bahut hai tujhako agar bhul jaayen ham;

Is zindagi men itani faraagat kise nasib;
Itana na yaad aa ke tujhe bhul jaayen ham;

Tu itani dilazada to na thi ai shab-e-firaaq;
Aa tere raaste mein sitaare lutaayen ham;

Wo log ab kahaan hain jo kahate the kal ' faraaz';
Ai ai khuda na karana tujhe bhi rulaayen ham;

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम;
ये भी बहुत है तुझको अगर भूल जाएँ हम;
इस जिंदगी में इतनी फरागत किसे नसीब;
इतना ना याद आ के तुझे भूल जाएँ हम;
तू इतनी दिलज़दा तो ना थी ऐ शब्-ए-फ़िराक;
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम;
वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फराज़';
ऐ ऐ खुदा ना करना तुझे भी रुलाएं हम..!

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